आज इंटरनेशनल मदर लैंग्वेज डे सेलिब्रेट किया जा रहा है। भाषा, है क्या, अपने इमोशन और थॉट्स को एक्सप्रेस करने का जरिया। लेकिन जो मदर लैंग्वेज है, वो खुद एक इमोशन है। कुछ समझाने से लेकर, चाहे किसी के लिए प्यार जताना हो, या गुस्सा करना हो, अपनी नेटिव या मातृभाषा में, इन इमोशन को एक्सप्रेस करने का फील ही कुछ और है। हमारा मन ही नहीं, हमारे दिमाग का भी मदर लैंग्वेज से इतना लगाव होता है, कि नींद में सपने भी हमें नेटिव लैंग्वेज में ही आते हैं। इंटरनेशनल मदर लैंग्वेज डे को मनाने का थॉट, सबसे पहले बांग्लादेश को आया था, हालांकि वो सिर्फ बांग्ला भाषा के लिए था। लेकिन यूनाइटेड नेशन जनरल एसेंबली को बांग्लादेश की यह राय अच्छी लगी, उसने 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के तौर पर मनाने की घोषणा की। और साल 2000 से यह दिन, हर साल मनाया जाने लगा। इस दिन को मनाने का मकसद दुनिया भर की, सभी मातृभाषाओं को प्रोमोट करना है। यूनेस्को का डाटा बताता है कि साल 2100 तक दुनिया की आधी भाषाएँ खत्म हो जाएँगी। इसके अनुसार, हर महीने में लगभग, 2 भाषाएं खत्म हो जाएंगी।
हिंदी की बात करें, तो दुनिया भर में तकरीबन 52 करोड़ लोग हिंदी बोलते हैं। शायद आप जानते होंगे कि तेलुगु एक ऐसी भारतीय भाषा है, जिसे ‘Italian of the East’ कहा जाता है। पंजाबी, राजस्थानी, तमिल, भोजपुरी और बिहारी या फिर हमारी कोई भी मातृ भाषा, सिर्फ एक लैंग्वेज नहीं, बल्कि हमारा सम्मान और गौरव है। इन मातृभाषाओं का एक ऐसा औरा है, जहां लोग बिना किसी हिचकिचाहट के एक-दूसरे के साथ अपनी भावनाओं और विचारों को शेयर कर पाते हैं। दुनिया में बोली जाने वाली हर भाषा का अपना एक कल्चर, राग, रंग और विरासत है। हर देश, हर राज्य से लेकर, हर परिवार की अपनी एक अलग भाषा है, जिसमें हर शख्स, एक अलग तरीके से अपनी भावनाओं को शेयर करता है। पार्टनर की खटपट में छिपा प्रेम भाव, भाई-बहन की नोक-झोंक में, अपनी नेटिव लैंग्वेज में कुछ उलटा-सीधा कहे बिना हमारे मन का सुकून कहां मिलता है। हर किसी की अपनी एक अलग भाषा है, कुछ लोग बोल कर एक्सप्रेस करने वाले होंगे, तो कुछ लोगों की अभिव्यक्ति की भाषा भी उन्ही की तरह शांत और मौन होती है। ऑफिस में ऑफिशियल लैंग्वेज का यूज भी हमारे लिए बहुत कंफरटेबल(comfortable) रहता है, लेकिन घर-परिवार में आकर, अपनों से अपनी मातृभाषा में बात करते का सुकून ही कुछ और है। मातृ भाषा निश्चित रूप से हमारे जीवन की सबसे कीमती खजानों में से एक है। क्योंकि अपनी नेटिव लैंग्वेज बोलते समय, हमारा दिल, दिमाग और जीभ के बीच एक सीधा कनेक्शन होता है। किसी शुभ अवसर पर महिलाएं अपनी नेटिव लैंग्वेज में लोक गीत गाती होंगी, तो आज भी, आप उस भाषा की फीलिंग और सुकून को महसूस कर पाते होंगे।
दुनिया भर में 40 परसेंट लोग ऐसे हैं, जो जिस भाषा को समझते या बोलते हैं, उन्हें उसमें शिक्षा नहीं मिल पाती। लेकिन आजकल, हम खुद अपने बच्चों को नेटिव लैंग्वेज से दूर कर रहे हैं। एक बच्चे से लेकर कोई भी, मान लीजिए कुछ नया सीखना चाहता है, तो वो उसे अपनी मातृभाषा में ज्यादा अच्छे तरीके से समझ पाएगा। अपनी नेटिव लैंग्वेज से दूर होने की वजह से, जेनरेशन गैप भी बढ़ रहा है। मान लीजिए किसी राजस्थानी फैमिली में दादा-पड़दादा, मारवाड़ी बोलते हैं, लेकिन उनके पोते-पोतियों को उस भाषा की समझ ही नहीं है। ऐसे में वो बुजुर्ग और बच्चे, दोनों ही एक-दूसरे के साथ बात करने में सहज नहीं होते होंगे। इसलिए हमें, अपने परिवार की बोली को सहेजने की जरूरत है। हांलाकि यह अलग बात है कि भावनाओं को समझने और व्यक्त करने के लिए शब्दों की जरूरत नहीं होती है, वो तो एक एहसास हैं। लेकिन फिर भी, हमें इन भाषाओं की विरासत का सहेजकर, अपनी अगली पीढि़यों को ट्रांसफर करना चाहिए, ताकि हमारे बुजुर्ग और जेनरेशन-जेड आपस में कंफरटेबल हो कर बातचीत कर पाएं। जाहिर सी बात है अगर भाषाएं फीकी पड़ती हैं, तो दुनिया की यह जो डायवर्सिटी है, वो धीरे-धीरे खत्म हो जाएगी। दुनिया में लगभग 6000 भाषाएं बोली जाती हैं, जिनमें से कम से कम 43% खत्म हो चुकी हैं। आज हमें बहुत सी भाषाएं आती हैं, लेकिन बावजूद इसके, हम अपनी मातृभाषा के साथ सबसे ज्यादा कंफरटेबल फील करते हैं। भाषा वो आईना है, जिसमें हमारी संस्कृति और सभ्यता देखी जा सकती है। द रेवोल्यूशन देशभक्त हिंदुस्तानी की ओर से, आप सभी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!